Exercise_51
वैसो तो बहुत से लोग राष्ट्रपति की हैसियत से भारत के बड़े-बड़े शहरों में समय-समय पर भ्रमण करते रहे हैं परन्तु पण्डित जी ने ही सर्व-प्रथम रातों-रात और दिनों-दिन गाँवों में घूमकर सब-से-बड़ा और सब से अच्छा तूफानी दौरा किया है। सर्वसाधारण जनता में पहिले-पहल काँग्रेस का बिगुल फूँकने का श्रेय इन्हें दिया जाये तो अनुचित न होगा। गरीब किसानों ने पहिले ही से सिर्फ जवाहरलाल जी का नाम सुना था। परन्तु जब तक वे उनके बीच में नहीं गये थे। तब तक वे बेचारे न उन्हें समझते थे और न काँग्रेस को पण्डित जी का बात-बात में जादू का असर है। अतः इनकी बातें सुनकर पहिले तो वे लोग एकाएक बहुत-अचम्भे में पड़ गये थे। सचमुच भारत हमारा और हम भारत के हैं। कम-से-कम वे समझने तो लगे कि स्वतंत्रता हमारा जन्म-सिद्ध-अधिकार है और इसके बगैर हम पशुओं से भी खराब हैं। टण्डन जी ने भाषण देते हुये कहा कि जहाँ-तहाँ से दिन-ब-दिन आने-वाली खबरों से मालूम होता है कि आगामी युद्ध ज्यादा-से-ज्यादा एक-दो वर्ष दूर है। इसलिए भारत को सब-से पहिले हिन्दू-मुसलमान यह जानते हुये भी अभी तक ज्यों-का-त्यों 36 का नाता है। दूसरी बात है खादी और देशी माल को व्यवहार में लाने की। जिसके बगैर हमारे देशी धन्धे नहीं पनप सकते, उसके बगैर हम सच्ची आजादी भी नहीं हासिल कर सकते।
--कुल शब्दः 215--

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