लालच बुरी बला
एक ग्राम में दीन दयाल नाम का एक पंडित एवम् उसकी पत्नी रहती थी।
उसकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए पंडित जी पूजन करके कुछ पैसा प्राप्त कर लेते थे।
एक दिन अमावस्या को पंडित जी को गाँव में कथा कराने जाना था वे उस दिन वहाँ गये
कथा कराकर के वापस अपने घर लौटे तो उनकी पत्नी ने पूछा कि आज अमावस्या है खाने में
क्या बनाना है। पंडित जी ने का आज कुछ अच्छी चीज बनाओ पंडित जी ने कहने के अनुसार
उसकी पत्नी ने लड्डू व अन्य खादय वस्तु बनायी।
जब दोनो खाना खाने बैठे तो पंडित जी की थाली परोसी गई उसमें चार
लड्डू व अन्य वस्तुएँ रखी थी। कुल नौ लड्डू बने थे। पंडित जी ने अपनी पत्नी से कहा
यह क्या चार लड्डू मुझे दिये और स्वयं पाँच लड्डू रखे मैं सब कुछ कमा कर लाता हूँ।
अतः मुझे पाँच लड्डू मिलने चाहिए।
पत्नी बोली- मैं क्यो चार लड्डू खाऊँ मैं तो घर का सारा काम करती
हूँ। अगर यह मैं नहीं बनाती तो आप कहाँ से खाते। पाँच लड्डू मुझे मिलना चाहिए।
दोनो में बहुत देर तक बहस होती रही। अंत में दोनो में यह शर्त लगी कि जो भी
सर्वप्रधम बोलेगा वही चार लड्डू खायेगा। दोनो को शर्त के मुताबिक उसी समय से बोलना
बंद करना पड़ा। दोनो एक स्थान पर बैठे रात हो गई। बिस्तर लगाने को कहां तो मुझे
चार लड्डू खाने पड़ेंगे। वे स्वयं बिस्तर लगा कर निद्रा में लीन हो गए व पंडिताइन
भी थाली के पास लुढक गई।
सुबह हुई मुहल्ले के लोग आश्चर्य चकित हो गये वे सोचने लगे के आज
पंडित जी को क्या हो गया, पंडित जी तो रोज सुबह चार बजे उठकर नहा धोकर पूजन पाठ
किया करते थे मगर आज क्यो हो गया। अभी तक नहीं उठे। लोगों ने कहा चलो पंडित जी को
चलकर देखते है। अभी तक पंडित जी नहीं उठे। लोगो ने दरवाजा तोड़ दिया और अंदर
प्रविष्ट हुये। उन्होंने देखा पंडित जी पड़े थे। व पंडिताइन भी थाली के पास लुढ़की
पड़ी थी।
लोगो ने सोचा। दोनो में झगड़ा हो गया। इसलिए दोनो ने जहर खा लिया।
इतनी हलचल को सुनकर भी उन्होंने आँखे नहीं
खोली। क्योंकि अगर वें आँखे खोलते तो मुँह से बोलना पड़ता तो चार लड्डू खाना
पड़ता। लोगो ने कहा पंडित जी व पंडिताइन को शमशान घाट ले जाने के बंदोबस्त किया
गया। लोगो ने कहा कि पहल पंडित जी को ले चले। पंडित जी को अर्थी पर डाला।
ले जाने लगे। इन्हे ले जाने के लिए केवल नौ लोग थे। दूर ले जाने पर
पंडित जीने अर्थी से उठकर कहा कि तू पाँच खा लेना मैं चार खा लूँगा। लोनो ने सोचा
पंडित जी भूत बन गये है। अपने नौ लोग है। अपन को खाने को कह रहे है। यहाँ से भाग
लेना चाहिए वे लोग अर्थी को वही पटक कर भाग गये। इधर पंडित जी के घर में कुछ औरते
पंडताइन के पास बैठी था। जैसे ही पंडितजी आए वैसे वे सब घबराकर भाग गयी। पूरे गाँव
में पंडित जी के भूत बनने का आतंक छा गया। मगर कुछ समझदार व बुजुर्ग लोग उसके पास
पहुँचे। उसने देखा तो पंडित जी ने आदर के साथ बैठकर पूरी कथा सुनाई। इसको सुनते ही
वे खूब हँसे और गाँव वालो को जब यह बात मालूम हुई तो कहने लगे कि लालच के कारण यह
तमाशा हुआ।

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