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मूर्ख सेठ हिन्दी कहानी।।The story of Foolish man


मूर्ख सेठ




 बहुत पहले की बात है। एक गाँव में एक सेठ रहता था। वह कंजूस होने के साथ-साथ मूर्ख भी था। उसे अपने जमा किए हुए सिक्को की गिनती तक नहीं थी। अपने अनगिनत सिक्को के ढेर को देखकर ही वह खुश रहता था।

     बरसात का मौसम जब आया तो कई दिनो तक वर्षा होती रही। सेठ को बस इतनी सी बात पता था कि बरसात के कारण चीजों में सील लग जाती है। सेठ को अब चिन्ता सताने लगी। उसके पास कई बोरे सिक्को से भरे थे। उसने सोचा मेरे सिक्को में सील न लग जाएँ?

     जैसे ही बरसात रुकी, सेठ ने अपने सिक्को को मुनिम की चौकसी में छत पर डलवा दिया। फिर दूसरे दिन उन्हे इकट्ठा करके उनका वजन लिया। वजन पहले जितनाही था। सेठ ने सोचा अभी इनकी सील निकली नहीं। मुनीम को निर्देश देकर उसने फिर सिक्को को धूप में फैलाया। बस फिर तो रोज का वहीं काम सिक्को का वजन कम होता था न सेठ का उन्हें धूप दिखवाना बंद होता था। मुनीम रोज-रोज की उस बेकार मेहनत से परेशान हो गया था। एक दिन तंग आकर वह अपने अधीन कर्मचारी से बोला- यह सेठ तो मूर्ख है जब तक इन सिक्को का वजन कम नहीं होगा सेठजी हमसे फिजूल मेहनत करवाते रहेंगे।

     क्यों न इऩ सिक्को की एक-एक पोटली अपने घर ले जाए? कर्मचारी सहमत हो गया। दोनो एक-एक पोटली सिक्का अपने घर ले गए। दूसरे दिन सेठ ने जब सिक्को को तुलवाया तो वजन कम था। सेठजी सेठानी से बोले इतने दिन धूप लगने पर अब सिक्को की सील निकली है। इन्हें बोरों में भरवाकर कोठरी में रखवा लो।


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