Ticker

6/recent/ticker-posts

सयानी बकरी हिन्दी कहानी।।Hindi story of clever Goat


सयानी बकरी




     एक जंगल था। खूब घना। लम्बा चौड़ा और सुन्दर। उसमें तरह-तरह के जानवर रहते थे। जंगल के बीच में घास के लम्बे चौड़े मैदान थे। जहाँ ढेर-ढेर हिरन नील गाय, जंगली भैसे चरते रहते थे। उन्ही के बीच एक जंगली बकरी भी रहती थी। बकरी अकेली नहीं थी। उसके तीन प्यारे-प्यारे बच्चे भी थे। सफेद, काले भूरे चिंगो वाले थे। ये बच्चे बड़े प्यारे थे। और घास में खूब खेलते थे। बच्चे तो मगन खेलते रहते, मैदानी घास पर उछलते कूदते, एक दूसरे को पटका-पटकी करते मगर उसकी माँ बड़ी दुःखी रहती। एक कहावत है बकरे की माँ कब तक खैर मनावेगी? वह घड़ी आ गई, जिसके लिए बकरी डरा करती था। यह अमावस की काली रात थी। लम्बे घने पेड़ों के बीच से हवा हूहू करती डराती दौड़ भाग कर रही थी। बूंदा बांदी से सारा जंगल भीग गया था। दूर सोन कुत्ते भौंक रहे थे। दूर  सियार भी हुआ हुआ कर रहे थे। लगातार कई दिनों की बारिश से जंगल के जानवर भूखे थे। यह बकरी को मालूम था। उसे लगा कि उशके दरवाजे पर कोई जानवर आकर खड़ा हो गया है। उसने अनुमान लगाया कि यह कलमुँहा सियार ही होगा। उसने छेट से बाहर देखने की कोशिश की। मगर बेकार अमावस की काली रात को पूरे जंगल को निगल लिया था। बकरी उठ बैठी। तेज आवाज में बोली हाय-हाय मेरे प्यारे बच्चो। तुम लोग तीन दिन से भूखे हो। सत्यानाश हो इस बारिश का उठो अब दुःख न करो। यह प्लेटे टेबल पर लगाओ तुम्हारा शिकार तो तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा है। अब वही करो जो मैं कहती हूँ।

     बच्चे चिल्लाये माँ खाना-खाना-खाना। उन्होंने जोर-जोर से चम्चम से प्लेटे बजाई।

     उसे डर था कि किसी दिन शेर, चीता, तेन्दुआ, भेड़िया या सोन कुत्ता उसके बच्चे को उठा ले जाएंगे। वैसे बकरी काफी तंदुरुस्त थी। उन माँसखोरो के आगे भला उसकी क्या चलती? फिर भी वह सदा चैकन्नी रहती। बच्चो को आस-पास ही रखती। सूरज ढलने से पहले ही अपने घर चली जाती। मगर इससे क्या? उसे मालूम था कु एक कल मुँहा सियार छुप-छुप कर उसके बच्चो को निहारा करता है। अपने मुँह से टपकने वाले लार को गुटकता रहता है। उसे मालूम था कि किसी न किसी दिन यह पाजी सियार धोका करेगा।

     बकरी थी बड़ी सियानी। उसे यह कहावत मालूम थी सावधान को धोखा नहीं। सो सियार से अपने परिवार को बचाने के लिए वह तरकीब सोचने लगी। उसके बच्चे तो अभी छोटे थे। मगर सयानी माँ के सयाने बच्चे भी तो थे। बकरी माँ ने बच्चो को सब समझाया और सबका काम बाँट दिया। उन्हे बताया कि जब विपदा आ पड़े तो घबराना नहीं चाहिए। जमकर उनका मुकाबला करना चाहिए। साहस सौ रोगो की दवा है।

     मेरे बच्चो इसे गाँठ बांध लो। आखिर बकरी ने कहा जरा सब्र कोर, बस अभी मिला।

     मगर पहले शिकार तो करना पड़ेगा। उसने फकार कर कहा ओर बेटे बड़के, धीरे से पिछले दरवाजे से निकल कर उसकी पिछली टांगे जकड़ लो।

     ओ बेटे छोटके, अगले दरवाजे से निकल कर उसकी गर्दन चाप लो।

     ओ बेटी मझली चढ़ जा अटारी पर। कूद तो उसकी पीठ पर। तोड़ उसकी कमर कर दे ढीला अंजर-पंजर और फिर हम उसे घसीट कर घर में लाएंगे। फिर तुम लोग जी भरकर खाना।

     माँ ने फिर पूछा डरोगे तो नहीं?

     बच्चे चिल्लाए नहीं नहीं डरे हमारे दुश्मन।

     माँ ने कहा अच्छा तो फिर एक साथ निकल पड़ो। देखो घायल मत होना।

     बच्चे एक साथ खटर-पटर करने लगे।

     बाहर सियार सब कुछ सुन रहा था वह अपने को बड़ा शूरवीर समझता था। मगर बकरी की बात सुनकर वह डर गया।

     जिसके बच्चे इतने निडर और बहादुर है। उसकी माँ कैसी होगी?

     यहाँ से तो भाग निकलना ही ठीक है। सो सियार दुम दबाकर भाग गये। अपने झुंड में मिलकर हुआ-हुआ रोने लगे।

     बकरी ने जान लिया कि सियार भाग गया है। इस तरह कमजोर बकरी अपने बुद्धि बल से अपने बच्चो का जीवन बचा सकी। एक कहावत है अक्ल बड़ी की भैस। सच पूछो तो बड़ी भैस ही दिखती है। अकल तो कही दिखती ही नहीं। मगर भैस को उसके सामने हार माननी ही पड़ती है।

     इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो अपनी अक्ल का उपयोग ठीक समय पर ठीक ढंग से करते हैं, जीत उन्ही की होती है।


Post a Comment

0 Comments