जादुई मोती
सैकड़ो वर्ष पहले की बात है। एक
गाँव में एक निर्धन परिवार रहता था। उस परिवार में केवल दो ही सदस्य थे, एक स्वयं
रामू व दूसरी उसकी बूढ़ी माँ, जो हर समय खटिया पर बीमार पड़ी रहती था। पैसे के
अभाव में रामू उसकी देख-रेख भली प्रकार से नहीं कर पाता था।
रामू जंगल से लकड़िया काटकर लाता
और उन्हें उचित दामों पर बेचकर जैस-तैसे अपनी व अपनी माँ की जीविका चलाता था। रामू
के बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी तभी से परिवार के भरण-पोषण का भार
उसके कंधो पर आ गया था।
जब रामू तीन-चार वर्ष का होगा, तब उसके पिता ने उसे सुन्दर सी बकरी लाकर दी थी। उसे रामू बहुत प्यार करता था। इसके लिए वह जंगल से हरी-हरी घास काटकर लाता और खिलाता। इसी तरह कई वर्ष बीत गए। एक दिन की बात है कि रामू ने जंगल में लकड़िया काटने के बाद अपनी बकरी के लिए टोकरी भर घास काटी और घर चल दिया। दूसरे दिन जब वह उसी स्थान पहुँचा तो उसे देखकर आश्चचर्य हुआ कि जहाँ से कल उसने घास काटी थी वहाँ रात भर में फिर उतनी ही लम्बी घास उग आई है। उसने लकड़ी काटने के बाद घास टोकरी भरी और घर लौट आया। तीसरे दिन रामू फिर उसी स्थान पर पहुँचा तो पाया कि आज फिर घास उतनी ही लंबी है। जितनी कि कल थी।
अब रामू रोज उसी स्थान पर जाता और
लकड़िया काटने के बाद अपनी बकरी के लिए घास काटकर ले आता। यह क्रम कई दिनों तक
चलता रहा। एक दिन उसने सोचा आखिर घास की जड़ में ऐसा क्या है? जिससे घास रोज बढ़
जाती है। यह सोचकर उसने घास के नीचे जमीन खोदना शुरु कर दी। कुछ ही दे बाद उसने
देखा कि मिट्टी के बीचों बीच कोई चीज चमक रही है। रामू ने हाथ अंदर डालकर उसे
निकाला। वह एक मोती था। रामू के ह्रदय में खुशी के तार झनझानें लगे। माँ को मोती
दिखाने वह घर पहुँचा।
घर पहुँचते ही उसके कदम ठिठक गए।
उसकी अपार खुशी को दुःख में बदलते देर न लगी। उसने पाया कि माँ जीवन की अंतिम
सांसे गिन रही है। उसे देखकर माँ बोली “बेटा आ गया तू, मैं तेरी ही इन्तजार कर रही थी, देख बेटा
मैं तो जा रही हूँ तू अपना ख्याल रखना हमेशा मेहनत से पाया हुआ धन ही खाना कभी
हराम की। माँ के गले से रुक-रुक कर निकलती यह आवाज बिल्कुल ही रुक गई।” रामू दहाड़
मार-मार कर रोने लगा।
कुछ दिन तक तो रामू को माँ की बहुत याद आई वह बेचारा दुःखी मन से
अकेला ही रहने लगा। एक दिन रामू को मोती का ध्यान आया। उस मोती को उसने चावल के
डिब्बे में डाल दिया था। रामू ने चावल के डिब्बे को संभाला तो उसे डिब्बा पहले से
अधिक भारी लगा और जब उसने ढक्कन खोला तो पाया कि डिब्बा चावलों से पूरा भरा है जो
कि मोती रखने से पूर्व बहुत खाली था। यह देखकर उसकी आँखे फटी रह गई। उसने अगले ही
पल उसमें से चावल निकाले और थोड़े से चावल उसकी तली पर ही पड़े रहने दिये। फिर
मोती डाल कर उसे बंद करके रख दिया। अगले दिन जब उसने डिब्बा खोला तो पाया आज फिर
डिब्बा चावलो से पूरा भरा है। उसे समझते देर न लगी कि मोती जादुई है। अब उसने मोती
को रुपये पैसो के डिब्बे में डाल दिया। देखते ही देखते उसके पास अपार धन इकट्ठा हो
गया।
वह जी भरकर खर्च करता मगर उसका धन कम ही नहीं होता? इस तरह वह बड़ा
वैभवशाली बन गया। जैसे-जैसे वह अमीर होता गया माँ की कही बर बात उसके दिमाग से
निकलती गई। धन ने उसे पहले दरजे का लालची बना दिया।
एक दिन रामू के पास एक पड़ौसी कुछ पैसा उधार मांगने आया। कुछ नहीं
दूँगा, ऐसे भिखमंगे यहाँ बहुत आते है। निकल जा यहाँ से। रामू ने चिल्लाकर कहा तो
वह आदमी अपना सा मुँह लेकर लौट गया। एक बार मूसलाधार पानी बरस रहा था। सर्दी की
भयानक काली रात थी। एक गरीब औरत ने पानी व ठण्ड से बचने के लिए रात गुजारने को
रामू के यहाँ जगह मांगी रामू ने उसे भी बेरहमी से भगा दिया।
मोती मिलने से पहले रामू एक उदार मेहनती आदमी था लेकिन अब उसकी
दुष्टता और कृपणता दिनो दिन बढ़ती जा रही थी। दुर्भाग्यवश एक बार उस गाँऴ में
भयंकर अकाल पड़ा लोग भूखे मरने लगे। पर रामू के यहाँ अकाल की छाया तक न थी। उसके
यहाँ अन्न के भण्डार भरे पड़े थे। यहां तक कि वह अपनी मुर्गियो को बकरी को भी खूब
अच्छा अनाज खिलाता था।
आखिर भूख से गाँव वालो ने निर्णय किया कि हम लोग अंतिम बार रामू के
पास जाए और उससे कुछ अनाज उधार देने की विनती करे। लेकिन जब रामू के कानों में
गाँव वालो के इस निर्णय की भनक पड़ी तो उसने सोचा इन भिखमंगों के आने से पहले मैं
ही क्यों नहीं यह गाँव छोड़कर चला जाऊँ।
यह सोचकर वह एक धन की पोटली और मोती लेकर शहर की तरफ चल दिया। धन
की पोटली उसने राह खर्च के लिए ली थी। चलते-चलते वह घर से बहुत दूर निकल आया। शाम
ढल चुकी था, अंधेरा छा गया देखत-देखते रात हो गई।
जंगल का सुनसान रास्ता था अचानक तीन डाकुओ ने उसे घेर लिया। रामू
तुरन्त उनका मतलब भांप गया उसने उन तीनो से नजर बचाकर मोती को अपने मुँह में रख
लिया क्योंकि वह जानता था कि यह मोती डाकू उससे अवश्य हड़प लेंगे। डरते-डरते उसने
धन की पोटली उनके हवाले कर दी। लेकिन तब भी डाकुओ ने रामू के शरीर का झाड़ा लिया,
पर उन्हे कुछ भी न मिला धन की पोटली लेकर तीनो डाकू अपने घोड़े पर सवार होकर चल
दिए।
रामू खुश था क्योंकि इतना सब कुछ होने पर भी उसका मोती उसके पास ही
था। तीनो डाकू उसके आगे धूल चाटकर लौट चुके थे। रात बहुत गहरी हो चुकी थी। रामू
बहुत थका हुआ था। उसने बगरद के पेड़ की डाल पर बैठ गया और कुछ ही पल में उसकी आँख
लग गई। थकान होने के कारण वह बहुत गहरी नींद सो गया और उसे इस बात का आभास तक न
हुआ कि वह नींद में कब मोती निगल गया।
सुबह चिड़ियो के मधुर कलख गूंजने से रामू की आँख खुली। उठते ही इसे बहुत तेज प्यास लगी। उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसके पेट में आग जल रही हो। जीभ और कंठ सूखे जा रहे थे। जल्दी-जल्दी वह समीप की नदी पर बैठ गया और उसका पानी चूल्लू से भर-भर कर पीने लगा। वह बहुत देर तक पानी पीता रहा, पर उसकी प्यास न बुझी। बेचैन रामू ने नदी के किनारे पेट के बल लेटकर नदी में मुँह लगाकर पानी पीने लगा और घंटो पीता रहा, मगर उसकी प्यास नहीं बुझी। थोड़ी ही देर में उसने महसूस किया मानो उसका पूरी शरीर आग की लपटो से घिरा हुआ है। सिर घूम रहा है। हाथ पैर गर्म हो रहे हैं। सांस लेना मुश्किल हो रहा है। उसकी प्यास ज्यो की त्यो है। वह फिर पानी पीने को झुका। अचानक जल में उसने एक भयानक आकृति देखी। जिसके मुँह से आग और धुए की लपटे निकल रही थी बड़ी-बड़ी लाल-लाल आँखों से चिंगारी छूट रही थी। रामू को समझते देर न लगी कि वह उसकी आकृति है। वह भयभीत होकर चीखने लगा, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। मैं रामू हूँ। उसकी आवाज पूरे जंगल में गूंजने लगी। शोर सुकर पक्षी घबराकर उड़ गए। रामू भयभीत होकर इधर-उधर दौड़ने लगा। किन्तु उसके सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गए। रामू राक्षस फिर से आदमी नहीं बन सका।
इस तरह मेहनत करके कमाने वाला हंसमुख रामू माँ की बातो को भूल कर
धन के लालाच में एक क्रूर भयानक राक्षस बन गया। अब लोग उसके पास आने से भी डरते
थे। उसे कोई नहीं पहचानता था कि वह रामू है।

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