कड़वे सत्य
संसार
में कुछ वस्तुए ऐसी हैं, जो रगड़ने और दबाने के बिना अपना सही आनन्द नहीं देती
जैसे कि-
मेंहदी,
जब तक इसे रगड़ा न जाए, यह रंग नहीं देगी।
ईख को
जब तक पेला न जाए, तब उसका रस नहीं निकलता और तब तक गुड़ व चीनी तैयार नहीं हो
सकते।
धरती
पर जब तक अच्छी तरह हल न चलाया जाए, तब तक अच्छी फसल नहीं होती।
ठीक
इसी प्रकार से जब तक नाल के साथ ऐसा व्यवहार न किया जाए तो उसका रंग निखरता ही
नहीं।
भंवरा
जब तक कमल दल के बीच रहता है, तब तक ही कमल के फूल का आनन्द लेता है।
किन्तु
संयोग की बात है कि परदेश में तौदिए का फूल ही उसके लिए बहुत होता है।
इसी
तरह भूखे रहने से तो थोड़ा सा भोजन करना भी अच्छा होता है, इससे कुछ न कुछ तो आसरा
मिलता है।
प्राणी को जैसा भी समय के अनुसार मिले, वैसा
ही उसे कर लेना चाहिए।
चन्दन
का पेड़ कट जाने से उसकी खुशबू समाप्त
नहीं हो जाती।
हाथी
बूढ़ा होने पर भी चंचल रहता है।
ईख
कोल्हू में पीड़े जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ता।
सोना आग में डालने के पश्चात भी अपनी चमक
नहीं खोता, इसी प्रकार से अच्छे खानदानी लोग कहीं भी चले जाए वे अपने गुणों को
नहीं छोड़ते। गुण और उनकी अच्छाई सदा ही उनके साथ रहते हैं।
इस धरती पर कौन ऐसा
है, जिसे धन पाकर गर्व न हुआ हो।
ऐसा कौन प्राणी है,
जिसे नारी ने व्याकुल न किया हो।
कौन मौत के पंजे से
बच पाया है।
कौन ऐसा है, जो बुराई
के जाल में न फंसा हो।
कौन ऐसा है, जो
मजेदार खानों को देखकर मुँह में पानी न भर लाया हो।
सच
तो यह है कि हम सब हमाम में नंगे है।
साँप के दांत से जहर
होता है।
मक्खी के सिर में और
बिच्छू की दुम में जहर होता है।
परन्तु बुरे इंसान के
तो पूरे शरीर में जहर होता है।
बुरा
प्राणी सबसे अधिक जहरीला होता है।
पहले क्या किसी ने
सोने का मृग देखा था?
कभी नहीं, फिर सीता
जी ने देखा था, रामजी ने उसी हिरण का पीछा किया, इसके फलस्वरूप सीता-हरण भी हुआ
ऐसा इसलिए हुआ कि विनाश काल आना था, तभी तो हर काम का उल्टा होता चला गया इसीलिए
कहा गया है-
विनाश के दिन जब आते
हैं तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है शक्ति जिसमें नहीं, वह साधु बन जाता है।
जिसके पास धन न हो,
वह ब्रह्मचारी बनता है।
बूढ़ी औरत सबसे अधिक
पतिव्रता बनती है।
यह सब के सब ढोंगी
होते हैं जैसे कि-
कभी
ताकतवर साधू नहीं बनता, धनवान ब्रह्मचारी नहीं बनता, सेहतमंद आदमी भक्ति नहीं
करता, सुन्दर नारी पतिव्रता धर्म के गुण कम ही गाती है।
मन में श्रद्धा हो तो
घर में ही गंगा है।
इसी कारण लोभी को
दूसरे के दोषों से क्या लेना।
चुगलखोर को दूसरे के
पापों से क्या लेना।
मन
यदि शुद्ध हो, ज्ञानी हो तो दूसरों के गुणों से क्या लेना।
गुण की सब स्थानों पर
पूजा होती है, धन की पूजा नहीं।
पूर्णिमा के चाँद को
सब लोग पूजते हैं, किन्तु दूज का दुर्लभ चाँद कहीं नहीं पूजा जाता।
गुणवान की प्रशंसा तो
सभी लोग करते हैं, किन्तु गुणवान यदि अपने मुँह से स्वयं प्रशंसा करे तो अच्छा
नहीं लगता।
गुण समझदार आदमी के पास जाकर निखर जाता है।
हीरे-मोती की कीमत वे
क्या जानें, रत्न तो शीश में जड़ जाने के पश्चात् चमकता है। मणि क्या तभी शोभा
देती है, जब उस सोने में जड़ा जाए।
प्राणी की चार चीजों
की भूख कभी नहीं मिटती। धन, जीवन, वासना और भोजन। सबके लिए हर मनुष्य सदा भूखा
रहता है। भलेही उसेयह चीजें जितनी भी मिल जायें लेकिन उस की लालसा नहीं मिटती।
अन्न से बढ़कर कोई
दान नहीं। द्वादशी से बढ़कर कोई तिथि नहीं। कोई गायत्री मंत्र से बढ़कर नहीं। कोई
देवा-देवता, माँ-बाप से बढ़कर नहीं। यह एक सत्य है।
राजा, वैश्या, यमराज,
आग, चोर, बालक, याचक, झगड़ा करने वाला, यह आठों ऐसे हैं जिनके लिए दूसरों का
दुःख-सुख का कारण बनता है।
काँचली में साँप रहते
हैं, कीचड़ में कमल के फूल खिलते हैं, केवल एक ही गुण के कारण कमल का फूल पूजा
जाता है। इसीलिए प्राणी अपने ही गुणों से ऊँचा उठ सकता है।
बिना
गुण के केवल पुस्तकों के सहारे ज्ञान प्राप्त करने वाला प्राणी बिल्कुल उस औरत की
भाँति है, जो बिना पति के सन्तान पैदा करने की आशा रखती है।
औरत ताकत को कम करके
अपनी और खींचती है।
धूध शक्ति बढ़ाता है।
प्रकृति
ने प्राणी के लिए हर चीज बनाई है। उनका उपयोग अच्छाई अथवा बुराई के लिए किया जाए
यह निर्णय केवल इंसान का फर्ज है।
गाय कुछ भी खाती है
परन्तु दूध देती है।
इसी दूध से बढ़िया से
बढ़िया पदार्थ बनते हैं।
इसी
तरह से बुद्धिमान प्राणी कुछ भी करें, उनका ज्ञान कभी कम नहीं होता। बुद्धिमान की
एक-एक बात कीमती होती है, बस उसके समझने का कष्ट करें।
इस संसार में बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो बाहर
अन्दर से एक हों।
हर आदमी के बाहर और
अंदर में अंतर होता है।
बाहर से भला, अंदर से
बुरा आदमी सदा ही चेहरे लगाता है।
जैसे
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और होते हैं।
महापुरुषों के गुण
देखों उनका काम नहीं।
हर महापुरुष में कोई
न कोई तो बुराई होती है।
श्रीकृष्ण जी रास
लाली करते थे।
अर्जुन औरत लाए थे।
राजा
शांतनु धीवर कन्य पर मोहित हो गए थे। यह बात याद रखो कोई भी महापुरुष अवगुण के
बिना नहीं होता।
पागल, कुवारी लड़की,
कोढ़ी, गुड़ चंडाल और कनफरे साधु इन सबको ही दूर से ही नमस्कार करो।
इनका साथ बहुत बुरा होता
है।
भाग्य में जो लिखा
है, वह कार्य होकर रहेगा।
कर्म और परिश्रम से
ही फल मिलता है।
यदि आम खाना आपके
नसीब में लिखा है तो क्या आम के पेड़ के नीचे मुँह खोलकर लेटने से मुँह में आम आकर गिर जाएगा।
ऐसा नहीं हो सकता,
उसके लिए तो परिश्रम तो करना ही पड़ेगा, केवल भाग्य के सहारे रहने वाले लोगों ने
तो ईश्वर को बदनाम कर रखा है।
परिश्रम
करने वालों ने भाग्य पर विजय प्राप्त कर ली।
तेल में पानी नहीं
मिलता है।
घी में से जल नहीं
निकलता है।
पारा किसी से नहीं
मिल सकता।
इसी
प्रकार विपरीत स्वभाव वाले, एक दूसरे से कभी नहीं मिल सकते।
समय न तो किसी के
रुकने से रुकता है। समय अपनी गति से चलता रहता है, समय किसी की प्रतीक्षा नहीं
करता इसीलिए समय की कीमत को समझें, गुजरा समय कभी वापस नहीं आता, सदा इन्सान ही
समय की प्रतीक्षा करता है।
समय का कोई मूल्य
नहीं है, इससे लाभ उठाने वाले ही आगे बढ़ते हैं।

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