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Hindi story||अनोखी कहानी||अनोखी शर्त


अनोखी शर्त



     सूर्यकान्त नामक एक राजा था। उसकी एक पुत्री थी नाम था रूपमती। राजकुमारी बचपन से ही चतुर बुद्धिमान थी। राजकुमारी जब बड़ी हुई तो राजा को उसके विवाह की चिन्ता सताने लगी। राजा चाहते थे कि रूपमती को ऐसा वर मिले जो चतुराई और बुद्धिमत्ता में उससे काफी तेज हो।

     राजा ने दूर-दूर के राज्यों में ऐसे सुयोग्य वर की खूब तलाश कराई। बरसो बीत गए परन्तु राजा सूर्यकान्त अपनी पुत्री के लिए जैसा वर चाहते थे। वैसा नहीं मिला।

     एक दिना राजा उदास अपने बगीचे में टहल रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि बगीचे के ठीक बीच में बने सरोवर पर पड़ी। सरोवर में एक सैनिक नहा रहा था। उसके वस्त्र-शस्त्र सरोवर के तट पर रखे थे। राजा सूर्यकान्त को सैनिक की इस धृष्टता पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने तुरन्त उसे अपने पास पकड़ बुलवाया और गुस्से में तमतमा कर पूछा तुमने राजमहल के सरोवर में स्नान करने का साहस कैसे किये?

     सैनिक ने सिर झुकाए हुए कहा महाराज मुझसे गलती हो गई। मेरी इस गलती को क्षमा करे। वैसे मैं आपकी चिन्ता को दूर करने के लिए आपसे मिलना चाहता था। किन्तु जब भी मैं आपके पास आने का प्रयत्न करता था तभी सुरक्षा कर्मियों के द्वारा भगा दिया जाता था। आफके पास आने का मेरे पास यही एक रास्ता शेष बचा था।

     राजा सूर्यकान्त सैनिक की इस चतुराई पर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हे सैनिक पर विश्वास हो गया कि यह जरूर मेरी चिन्ता दूर करने का उपाय बतलाएगा। राजा बोले बताओ हमारी चिन्ता दूर करने का कौनसा उपाय सोचा है तुमने?

     सैनिक ने कहा महाराज मैं सरोवर के तट पर एक स्तम्भ बनाऊँगा जो उसको बिना हाथ लगाए गिरा देगा उसी से आप अपनी पुत्री रूपमती का विवाह कर दीजिएगा।

     राजा को बिना हाथ लगाए स्तम्भ गिरा देने वाली बात बड़ी विचित्र लगी। साथ ही शंकर भी उत्पन्न हुई कि उस स्तम्भ को गिरा देने का भेद इस सैनिक के अतिरिक्त किसी को भी पता नहीं होगा। कही राजसी घोषणा के बाद यही उस स्तंभ को गिराकर हमारा दामाद न बन बैठे?

     फिर भी कुछ सोचते हुए राजा ने सैनिक को स्तंभ बनाने की अनुमति दे दी। कुछ ही दिनों में स्तंभ बनाकर सैनिक ने उस पर काला रंग कर दिया। ठिक ग्यारहवे दिने उसने सूर्यकान्त के पास जाकर कहा- महाराज स्तंभ तैयार हो गया। अब आप बिना हाथ लगाए स्तंभ गिराने की घोषणा कर सकते हैं।

     घोषणा के बाद राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा रखने वाले अनेक युवक आने लगे। युवक आते और स्तंभ को देखते तथा सिर झुकाकर चले जाते किसी की समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर बिना हाथ लगाए किस प्रकार से स्तंभ गिराया जा सकता है।

     समय धीरे-धीरे गुजरता गया। लेकिन स्तंभ कोई भी नहीं गिरा सका। रूपमती की आयु बढ़ती जा रही थी। राजा को अब पहले से भी अधिक चिन्ता रहने लगी। एक दिन उन्होंने देखा कि बगीचे में एक रूपवान किशोर आया। धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ वह सरोवर पे बनें स्तंभ के पास पहुँचा। थोड़ी देर वह उसे देखता रहा। फिर पास के एक वृक्ष से एक टहनी तोड़ी। उसे सरोवर के पानी में डूबोकर उस पर फिराया फिर उसके पत्ते चबाने लगा।

     राजा ने उस युवक के पास पहुँचकर उससके कहा क्या तुम बिना हाथ लगाए यह स्तंभ गिरा सकते हो? उस युवक ने हाँ में अपना सिर हिला दिया।

     यह बात सारे शहर में फैल गई। थोड़ी देर में ही राजा के बगीचे में लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। भीड़ के सदस्य देखना चाहते थे कि बिना हाथ लगाए वह युवक स्तंभ को कैसे तोड़ता गिराता है।

     राजा ने युवक को स्तंभ गिराने का आदेश दिया। आज्ञा पाते ही उस युवक ने उसके ऊपर मटके भर-भर कर सरोवर का पानी डालना शुरु कर दिया। दो दिन तक लगातार पानी डालने पर पूरा स्तंभ गल कर बह गया।
राजा मुस्करा उठे। लोग उस युवक की जय-जयकार करने लगे। रानी ने अपनी रूपमती के विवाह की घोषणा कर दी।

     विवाह हो जाने के बाद जब दोनों आशीर्वाद लेने राजा के पास गए तो राजा ने पूछा बेटा तुम कोई भी हो बुद्धिमान और चतुर हो। मुझे केवल एक बात दो कि उस स्तंभ को गला कर गिराने का रहस्य तुम्हे किसने बताया?
स्वयं उस स्तंभ ने। युवक ने उत्तर दिया वह स्तंभ ईट पत्थर का नहीं, नमक के ठोस टुकड़ों से बना था। उसकी गंध से ही मुझे उस बात की शंका हो गई थी। बस आपका आदेश मिलते ही मैंने पानी डालने लगा और वह बह गया।




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