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Hindi Kahani||हिन्दी कहानी||वफादर तोता||



वफादार तोता







    एक लकड़हारा था बिल्कुल अकेला। वह रोज जंगल जाता। लकड़ी काटकर लाता और उसे बेचकर अपना पेट भरता था।

      एक दिन की बात है। जंगल में उसे एक घायल तोते की आवाज सुनाई पड़ी। दरअसल तोता कंटीली झाड़ी में फंसा हुआ था। तोते को इस हाल में देखकर उसे दया आ गई। उसने बड़े प्यार से तोते को झाड़ियों से निकाला। तोता दर्द से बेचैन हुआ जा रहा था। लकड़हारे न पहले तो उनके शरीर में चुभे हुए काँटे निकाले और फिर अपने खाने में से रोटी का टुकड़ा उसे खाने को दिया। तोते ने थोड़ा से ही खाया और कुछ यूं ही रहने दिया।

    लकड़हारे ने तोते के दर्द को देखकर लकड़ी काटने का अपना मन त्याग दिया और तोते को लेकर घर आ गया। वहाँ उसने तोते के जख्मों पर जड़ी बूटी से बनी दवाईयाँ रखकर उपचार किया और लकड़ी से बने पिंजरे में बंद कर दिया।

      तोता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। अब लकड़हारा और तोता एक दूसरे को बेहद प्यार करने लगे। लकड़हारा प्रत्येक दिन तोते को खाना देकर ही लकड़ी के लिए जंगल जाता।

    लकड़हारे के प्यार और स्नेह से तोता बहुत खुश था। फिर भी उसके मन में एक तरह की व्याकुलता की स्थिति बना रहती थी। सुबह-शाम जब पक्षी आकाश में चह चहाते उधर से गुजरते तो तोता भी उड़ान भरने के लिए अपने पंखों को पिंजरे के भीतर फड़फड़ाने लगता था।

      एक दिन लकड़हारा तोते को खाना देकर पिंजरे का दरवाला खुला छोड़कर जंगल चला गया। उधर तोते ने सोचा आज मौका है उड़ भागने का। वह सकुचाते हुए पिंजरे से निकला फिर छत पर जा बैठा वहाँ वह सोचने लगा कि लकड़हारे ने मुझे और फिर नया जीवन दिया है, भागना ठीक नहीं। फिर सोचा पंख  रहते पिंजरे में बंद रहना भी बुद्धिमानी नहीं। इस उधेड़बुन के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। मैं स्वच्छंद आकाश में विचरण करने वाला पक्षी हूँ, तो फिर पिंजरे में बंद क्यों रहूँ। बस तोता फुई हो गया आकाश में।

    उधर लकड़हारा जब घर आया तो देखा कि पिंजरे का दरवाजा खुला है और तोता गायब। उसके होश उड़ गये। वह कुछ देर तक खाली पिंजरे को देखता रहा। मानो काटो तो खून नहीं। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसके बेटा उसे दगा देकर भाग गया हो। वह बेचैन रहने लगा और दो दिन तक खाना नहीं खाया।

      दुख में डूबे लकड़हारे को अपने जीवन के लिए लकड़ी तो काटना ही था से वह पुनः दूसरे दिन जंगल की ओर चल दिया। चलते-चलते वह उस स्थान पर पहुँचा जहाँ से वह घायल तोते को उठाकर घर लाया था याद ताजा हो गयी औऱ वह वही एक पेड़ के नीचे बैठकर तोते के वियेग में बिलख बिलखकर रोने लगा। संयोग था कि वह तोता उसी समय ऊपर से गुजर रहा था। नीचे देखा तो उसे वह कंटीली झाड़ी दिखायी दी जिसमें वह फंसा था और लकड़हारा भी दिखलाई दिया जिसने उसकी जान बचाई थी। 

     उसने सोचा एक दिन मैं यही दर्द से बेचान कराह रहा था और आज मेरा जीवन दाता लकड़हारा कराह रहा है। आज मैं लकड़हारा से अवश्य मिलूगाँ। इतना सोचकर वह नीचे उतरा और लकड़हारे के कंधे पर जा बैठा। लकड़हारा सी तोते को अपनी पीठ पर बैठा पाकर खुशी से उछल पड़ा और उसे बार-बार चूमने और सहलाने लगा। वियोग अब मिलने की मिठास में बदल गया।

    लकड़हारा तोते को लेकर घर पहुँचा। अब वह लकड़हारा तोते को पिंजरे में बंद करना पसंद नहीं करता बल्कि यूं ही छोड़ देता है। दोनो साथ-साथ रहते, जहाँ जाते साथ जाते, जो खाते साथ खाते। दोनों की जिंदगी मौज मस्ती में काटने लगी।


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