चक्र सुदर्शन कहाँ गया
कृष्ण कन्हैया कहाँ गये बलराम तुम्हारा कहाँ गया।
कहाँ तुम्हारा योद्धा अर्जुन चक्र सुदर्शन कहाँ गया।।
अगणित कंस धरा पर पनपे चहुँदिशि हाहाकार हुआ।
वैरभाव की आग धधकती निर्दोषों पर वार हुआ।।
झूठ कपट छीना कपटी औ हिंसा का संसार हुआ।
दानव सा मानव से जग में मानव का व्यवहार हुआ।
दीनदयाल दया के सागर प्रण तेरा वह कहाँ गया।
कहाँ तुम्हारा योद्धा अर्जुन चक्र सुदर्शन कहाँ गया।। 1 ।।
बेच रहे ईमान जगत में झूठा सब व्यापार हुआ।
झगड़ रहे भाई से भाई दुश्मन सा आचार हुआ।।
अबलाओं के संग घिनौना जग में है व्यभिचार हुआ।
आतंकी जीवन है जीकर मानव अब खूंखार हुआ।।
भरी सभा में द्रुपद-सुता का चीर बढ़ाना कहाँ गया।
कहाँ तुम्हारा योद्धा अर्जुन चक्र सुदर्शन कहाँ गया।। 2 ।।
किससे जाकर कहें यहां तक सुनती नहीं अदालत है।
हे प्रभु- तेरी इस दुनियां की बदतर हो गई हालत है।।
सोच समझकर सब कुछ देखा झगड़ें की जड़ दौलत है।
दुुष्ट दलन के हेतु प्रकट हो मेरी यही वकालत है।।
कोपत्रस्त ब्रजवासी हित गोवर्धन धारण कहाँ गया।
कहाँ तुम्हारा योद्धा अर्जुन चक्र सुदर्शन कहाँ गया।। 3 ।।

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