कौनसा! बेहतर माँ का दूध या डिब्बे का दूध
दुनिया की तरह भारत भी इस बहस से अछूता नहीं है। बहस के
दौरान कई बार कुछ बातें कही जाती हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता। डब्ल्यूएचओ
ब्रेस्ट मिल्क को लेकर जागरुकता अभियान भी चलता है, जिसका महत्वपूर्ण हिस्सा माना
जाता है विश्व स्तनपान सप्ताह। ब्रेस्ट मिल्क के बारे में जानकारियों की कमी नहीं
है। इसके फायदे बताते हुए कई बोर्ड और होर्डिंग अस्पतालों, आंगनवाड़ी केंद्रो और
प्रार्थमिक स्वास्थ्य केंद्रों समेत कई सार्वजनिक स्थलों पर देखने को मिल जाएंगे।
डॉक्टर इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही उसे मां का पीला
गाढ़ा दूध पिलाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी
इम्यूनिटी बढ़ती है। बावजूद इसके, कई बार सही जानकारी नहीं होने और सहयोग की कमी
की वजह से कई माताएं ब्रेस्ट मिल्क के विकल्प के तौर पर फार्मूला मिल्क का
इस्तेमाल करती हैं। कई मांओं की शिकायत होती है कि उन्हें पर्याप्त दूध नहीं होता,
जिसकी वजह से मजबूरी में उन्हें फॉर्मूला मिल्क का इस्तेमाल करना पड़ता है।
फॉर्मूला मिल्क को बेबी फॉर्मूला
या इंफेंट फॉर्मूला का नाम से भी जाना जाता है। यह सामान्य तौर पर गाय के दूध से
बनता है। इसे ट्रीट करके बच्चे के लिहाज से उपयुक्त बनाया जाता है। इसे ब्रेस्ट मिल्क
का विकल्प माना जाता है, लेकिन अगर बच्चे की सेहत की बात करें तो डब्ल्यूएचओ
स्तनपान को ही आदर्श आहार मानता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे के लिए
स्तनपान ही बेहतर होने की जानकारी हर मां के पास होती है। समस्या यहां आती है कि
गलत जानकारी की वजह से वह मान बैठती हैं कि ब्रेस्ट मिल्क उसके शिशु के लिए
पर्याप्त नहीं है। असल में सारा खेल फॉर्मूला मिल्क और इससे जुड़े उत्पाद बनाने
वाली कंपनियों के विज्ञापन के जरिए फैलाए जा रहे कारोबारी भ्रम का है, जिसे
महिलाओं को समझना होगा। महिलाओं को इन कंपनियों के झांसे में आकर कोई भी राय बनाने
से बचना चाहिए। फॉर्मूला मिल्क को इस तरह तैयारसे किया जाता है कि वह ब्रेस्ट
मिल्क के करीब हो। हालांकि ऐसा होता नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि प्रोटीन,
कार्बोहाइड्रेट दोनों में हैं, लेकिन ब्रेस्ट मिल्क की खासियत ह कि उसमें जो प्रोटीन है, वह आसनी से पचता है।
इससे बच्चे को कब्ज की समस्या नहीं होती। ब्रेस्ट मिल्क इम्यूनिटी बढ़ाता है और
संक्रमण को रोकता है। यह क्षमता फॉर्मूला मिल्क में नहीं है। ब्रेस्ट मिल्क में
कुछ ऐसे तत्व भी हैं, जो बच्चे के मस्तिष्क विकास के लिए जरूरी हैं। ब्रेस्ट मिल्क
में मिलने वाले विटामिन प्राकृतिक हैं, जबकि फॉर्मूला मिल्क में सिंथेटिक हैं।
स्तनपान करने वाले बच्चों में मोटापे की समस्या कम होती है, जबकि फॉर्मूला मिल्क
पीने वाले बच्चों को वजन ज्यादा बढ़ता है।
डब्ल्यूएचओ ने 1981 में इंटरनेशनल
कोड ऑफ मार्केटिंग ब्रेस्ट मिल्क सब्स्टीट्यूट्स तैयार किया था। इसके आधार पर भारत में 1992 में आईएमएस एक्ट लागू
हुआ। यूनिसेफ का कहना है कि वैसे शिशु जिन्हें केवल स्तनपान कराया जाता है, उनकी
मृत्यु की आशंका उन शिशुओं की तुलना में 14 गुना कम होती है, जिन्हें स्तनपान नहीं
कराया जाता है। हालांकि अभी केवल 41 प्रतिशत शिशुओं को ही 0-6 महीने के बीच सिर्फ
स्तनपान ही कराया जाता है। डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने 2025 तक इस दर को बढ़ाकर
50 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। उसका कहना है कि शिशुओं को पहले 6 महीनों के
लिए मां के दूध के अलावा कुछ भी नहीं देना इसके बाद उन्हें 2 साल या उससे अधिक
उम्र तक स्तनपान के साथ अन्य पोष्टिक और सुरक्षित खाद्य पदार्थ देने चाहिए।
इसलिए, मेरा आप सब से अनुरोध है कि बच्चे को केवल माँ का ही दूध पिलाये। एवं इधर-उधर की बातों पर ध्यान न दें। बच्चों के लिए केवल माँ का ही दूध सर्वोत्तम उपाय है। जिससे बच्चा स्वस्थ एवं शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनता है।
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