सच्चा त्याग
एक समय की बात है, राजा विक्रमादित्य के राज्य में अचानक सूखा पड़ गया। शहर के
सभी बड़े तालाब, कुएं आदि सूख गये। यहाँ तक कि बड़ी-बड़ी बावड़ियो में भी पानी कतऊ
नहीं रहा।
पानी की तलाश में लोग इधर-उधर भटकने लगे मगर पानी न मिला। आखिरकार लोग शहर
छोड़कर जाने लगे यहाँ तक कि पक्षी भी उड़कर दूसरे शहर की और जाते हुए दिखाई दे रहे
थे।
राजा पानी की तलाश में भटक रहे थे कि एक बूड़ा भिखारी दिखाई दिया राजा ने अपनी
दिल की बात बूढ़े बाबा से कह दी। बूढ़े बाबा ने बताया पूर्व में एक छोटी सी बावड़ी
है। सूर्योदय के पहले वहाँ जाकर अगर तू मन लगाकर कठोर तपस्या करेगा तो गंगा मैया
अवश्य तुम पर प्रसन्न होगी।
राजा ने ऐसा ही किया सूर्योदय के पहले
उफ बावड़ी के पास तपस्या करने लगा। जब गंगा मैया को खबर पहुँची कि उज्जैन नगर के
मशहूर बुद्धिमान राजा अपनी प्रजा के सुख के लिए मुझ से पानी माँग रहे है, तो गंगा
मैया एकदम धरती पर प्रकट हुई और बोली-राजा क्या चाहिए तुझे? राजा ने पूरी बात
बताई। तब गंगा मैया बोली- यह मैं तुझे एक लोटे में पानी दे रही हूँ। तू इसे पश्चिम
में जाकर एक बावड़ी में डाल देना जहाँ से यह पानी सभी कुँओं में पहुँच जाएगा।
राजा उस लोटे को लेकर पश्चिम की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे एक बुढ़िया पड़ी
दिखाई दी। उसके मुख में सिर्फ पानी-पानी की पुकार निकल रही था। राजा उस बुढ़ियाय
के पास गया और बोला-माता यह ले, पानी पीले। उस बुढ़िया ने कहा नहीं राजा तू ही
पीले इसे। तूझे तो पूरी जनती की सेवा करनी है, मेरा क्या आज नहीं कल चली जाऊँगी।
राजा ने कहा नहीं माता मेरे जीते जी आप नहीं जा सकती।
यह सुनकर गंगा मैया पुनः प्रकट हो गई और बोली राजा तुम महान हो। अब तुम्हारी
प्रजा को कभी भी पानी के लिए हताश नहीं होना पड़ेगा।
उस दिन के बाद उज्जैन नगरी में किसी को भी पानी के लिये मोहताज नहीं होना
पड़ा।

0 Comments