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दीपावली की सच्ची बातें||how to celebrate dewali


दिपावली का परम सत्य



प्रकाश का पुण्य पर्व दीपावली भारतीय संस्कृति का अनोखा एवं पावन पर्व है। हजारों-हजार वर्षों से अमावस्या की अंधेरी रात की कालिमा को दूर करने कोटि-कोटि दीपमालायें प्रज्जवलित होती है। घर-द्वार मंदिर मठ सब के सब दीपों की चमक से जगमगा उठते है।

किन्तु जमाने के साथ-साथ पर्वों-त्यौहारों में भी परिवर्तन आया है। फास्ट फूड की तरह हम त्यौहारों को भी आनन-फानन निबटा लेना चाहते हैं जबकि ऐसा करने से त्यौहारों के पीछे छिपी भावना ही समाप्त हो जाता है। दीपावली के साथ ही कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ है। दरअसल दीपावली पांच दिनों का पर्व है और हर दिन का अपना विशिष्ट महत्व है। यह संपूर्णता में प्रकाश भाव का पर्व है न सिर्फ धनलक्ष्मी की पूजा का।
धनतेरस की शाम से यह पर्व शुरु होता है। नये बर्तनों की चमक से बाजार दमक उठता है। नरक चतुर्दशी को मृत्यु देवता यम को दीये जाते है, मृत्यु के अंधकार को जीवन के प्रकाश की ओर अभिमुख किया जाता है। समस्त वाह्म अभ्यान्तर अशुचिताओं को विदा देने का काम सम्पन्न होता है। फिर अमावस्या को बड़े पैमाने पर दीपावली मनायी जाती है। दीपावली की सुबह दरिद्र को स्त्रियां सूप बजा-बजाकर घर से बाहर निकलती है। प्रतिपदा को अन्नकूट होता है। छप्पन प्रकार के व्यंजन, बासियों साग-सब्जियों का पंचमेल गड्डा पकता है, उसमें नाना प्रकार के मसाले और छौंक के द्रव्य पड़ते हैं। फिर गोरस के अनेक प्रकार के व्यंजन बनते हैं और ये सभी विश्वव्यापनशील भगवाल विष्णु को या उनके पूर्वावतार कृष्ण के गोवर्धनाचल विग्रह के समर्पित होते है। द्वितीया को प्रातःकाल स्त्रियाँ गोबर की आकृतियाँ बनाती हैं। नाना प्रकार के अमंगल की और उनके ऊपर नाना प्रकार का आपदाओं के प्रतिरूप काँटे बिछाती है। उन्हें मूलस से कूटती हैं, फिर सब बटोर कर पिण्डी बनाती है, यह दमित अमंगल समृद्धि का उपलक्षण बन कर अऩाज के भंडारों में रखा जाता है।
आइये दीपोत्सव के इस पावन पर्व को हम सब भारतवासी मिलकर इसे इसके मूल सांस्कृतिक रूप में बनावें ताकि हमारे सांस्कृतिक पर्वों की गरिमा बनी रहें। 

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