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Vidपur niti Part-2||विदुर नीती भाग-2

विदुर नीति 

भाग-2

  • जो मनुष्य अपने साथ जैसा वर्ताव करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए- यही नीति धर्म है। कपट का आचरण करने वाले के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करें और अच्छा बर्ताव करने वाले के साथ साधु भाव से ही बर्ताव करना चाहिए।
  • बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों का, असूया धर्मा चरण का, काम लज्जा का, नीच पुरुषों की सेवा सदाचार का, क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का ही नाश कर देता है।
  • जब सभी वेदों में पुरुष को सौ वर्ष की आयु वाला बताया गया है, तो वह किसी कारण से अपनी पूर्ण आयु को नहीं पाता।
  • अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, अपनी ही पेट पालने की चिंता और मित्र-द्रीह- ये छः तीखी तलवारें देह धारियों की आयु को काटती हैं। ये ही मनुष्यों का वध करती हैं मृत्यु नहीं। 
  • जो अपने ऊपर विश्वास करने वाली स्त्री के साथ छल करता है, जो गुरुस्त्री गामी, ब्रह्माण शूद्र की स्त्री से संबंध रखता है, शराब पीता है तथा जो बड़ों पर हुक्म चलाने वाला, दूसरों की जीविका नष्ट करने वाला, ब्रह्माणों को सेवा कार्य के लिए इधर-उधर भेजने वाला और शरणागत की हिंसा करने वाला है- ये सब के सब ब्रह्म हत्या के समान हैं, इनका संग हो जाने पर प्रयाश्चित करें- यह वेदों की आज्ञा है। 
  • बड़ों की आज्ञा मानने वाला, नीतिज्ञ दाता, यज्ञशेष अंत भोजन करने वाला, हिंसा रहित, अनर्थकारी कार्यों से दूर रहने वाला, कृतज्ञ, सत्यवादी और कोमल स्वभाव वाला विद्वान स्वगैगैमी होता है। 
  • सदा प्रिय वजन बोलने वाले मनुष्य तो सहज में ही मिल सकते हैं, किंतु जो अप्रिय होता हुआ हितकारी हो, ऐसे वजन के वक्ता और श्रोता दोनों ही दुर्लभ हैं। 
  • जो धर्म का आश्रय लोकर तथा स्वामी को प्रिय लगेगा या अप्रिय इसका विचार छोड़कर अप्रिय होने पर भी हित की बात कहता है, उसी से राजा को सच्ची सहायता मिलती है। 
  • कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए, गाँव का और आत्मा के कल्याण के लिए सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए।
  • आपत्ति के लिए धन की रक्षा करें, धन के द्वारा स्त्री की रक्षा करें और स्त्री एवं धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करें।
  • पहले के समय में जुआ खेलना मनुष्यों में वैर डालने का कारण देखाय गया है, अतः बुद्धिमान मनुष्य हँसी के लिए भी जुआ न खेले। 
  • राजन् मैंने जुए का खेल आरंभ होते ही कहा था कि यह ठीक नहीं है, किंतु रोगी को जैसे दवा और पथ्य नहीं भाते, उसी तरह मेरी वह बात भी आपको अच्छी नहीं लगी। 
  • नरेन्द्र आप कौओं के समान अपने पुत्रों के द्वारा विचित्र पंख वाले मोरों के सदृश पाण्डवों को पराजित करने का प्रयत्न कर रहे हैं, सिंह को छोड़कर सियारों की रक्षा कर रहे हैं, समय आने पर आपको इसके लिए पश्चाताप करना पड़ेगा। 
  • तात जो स्वामी सदा हित साधन में लगे रहने वाले अपने भक्त सेवक पर कभी क्रोध नहीं करता, उसक प्र मृत्यु गण विश्वास करते हैं और उसे आपत्ति के समय भी नहीं छोड़ते। 
  • सेवकों की जीविका बंद करके दूसरों का राज्य और धन के अपहरण का प्रयत्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि अपनी जीविका छिन जाने से भोगों से वंचित होकर पहले के प्रेमी मंत्री भी उस समय विरोधी बन जाते हैं और राजा का परित्याग कर देते हैं। 
  • पहले कर्त्तव्य, आय-व्यय और उचित वेतन आदि का निश्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करें, क्योंकि कठिन से कठिन कार्य भी सहायकों द्वारा साध्य होते हैं। 
  • जो सेवक, स्वामी के अभिप्राय को समझकर आलस्व रहित हो समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने वाला है, उसे अपने समान समझकर कृपा करनी चाहिए।
  • जो सेवक स्वामी के आज्ञा देेने पर उनकी बात का आदर नहीं करता, किसी काम में लगाए जाने पर इंकार कर जाता है, अपनी बुद्धि पर गर्व करने और प्रतिकृल बोलने वाले उस भृत को शीघ्र ही त्याय देना चाहिए। 
  • अहंकार रहित, कायरताशून्य, शीघ्र काम पूरा करने वाला दयालू, शु्द्ध ह्रदय, दूसरों के बहकावे में न आने वाला, निरोग और उदार वचन वाला- इन आठ गुणों से युक्त मनुष्यों को दूत बनाने योग्य बताया गया है।
  • सावधान मनुष्य विश्वास करके सायंकाल में कभई किसी दूसरे अविश्वस्त मनुष्य के घर न जाए, रात में छिपकर चौराहे पर खड़ा हो और राजा जिस स्त्री को ग्रहण करना चाहता हो उसे प्राप्त करने का यत्न न करे।

विदुर नीति भाग-1 पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें https://upadhyayhindimaster.blogspot.com/2020/04/vidhur-niti-in-hindi.html


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