दीप
हमने दीप जलाया है- मानवता की लाली का।
हम सींचेंगे तेल स्नेह का- उजियाला खुशहाली का।।
यह सदियों से जलता रहा दीप और जलता जायेगा।
चाहे जितने तूफां आये, पर कभी नहीं बुझ पायेगा।।
प्रेम अमर है नेह अमर है, सृष्टि का क्रम है अविरल।
तम तो ज्योति की महत्ती का, दिग्दरशक है प्रतिपल।।
हम असुर रक्त से भरने वाले खाली खप्पर काली का।
हम सींचेगे तेल स्नेह का- उजियारा खुशहाली का।।
कितने तेमूरो को हमने, जीवन का पथ दिखलाया है।
खड़ग तोड़ दी अशोक ने, बुद्ध शरण में वह आया है।।
सिकन्दर के क्रूर नयन, पोरू ने निज असि से खोले।
असुरों के दल बल को- दधीची ने निज अस्थी से तोले।।
रखवाला हर मानवमाली- बियां की हर डाली का।
हम सीचेंगे तेल स्नेह का-उजियारा खुशहाली का।।
तम का सौदा करने वालों-अपने नकली चेहरे धोलो।
खोलो अपने मन मन्दिर के, बन्द किवाडै जो खोलो।।
सुरा से भी अधिक नशीली, धुन मुरली की होती है।
तलवारों से तिखी नोंक सदा कमल की होती है।
आज करै हम द्रोण प्रतिज्ञा-कुटियां की रखवाली का।
हम सीचेंगे तेल स्नेह का - उजियारा खुशहाली का।।
धन्यवाद

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