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rishi pranali abhyas 53 in hindi|| ऋषि प्रणाली अभ्यास-53 लिखित

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Exercise_53

     काल-चक्र सदा बेरोक-टोक अपनी गति से चला करता है। संसार की कोई भी शक्ति इसके सम्मुख जरा भी नहीं टिक सकती। कौन आता है? कौन जाता है? कौन सा आदमी क्या काम करता है? इन सबसे मानो मतलब होते हुए भी कुछ मतलब नहीं हैं। मालूम होता है कि इस चिन्ताकुल संसार में वह बिल्कुल चिन्ता रहित है। उसे किसी की परवाह नहीं परन्तु सबको उसकी परवाह है। इतना ही नहीं सारी सृष्टि, सम्पूर्ण जन-समाज, जन-संख्या का जरा भी ख्याल न रखकर हर-तरह से अथवा सब तरह से मूक बकरी की तरह उसके इशारे पर नाचता है। क्या पता कि वह किस समय क्या करता है। कौन जानता था कि हमारे पूज्य राष्ट्रपति की मातेश्वरी एकाएक हमसे सदा के लिए विलग हो जायेंगी। श्रीमती स्वरूप रानी जन्मभूमि की सच्ची पुत्री, आदर्श भारत रमणी, जन-साधारण की माता उन कतिपय महिलाओं में से थीं जिन्होंने देश के लिये अपना तन-मन-धन सब-कुछ हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया है। इतना ही नहीं बल्कि उसने अपने इकलौते पुत्र को भी भारत-माता को भेंट कर दिया है। कैसा अपूर्व त्याग है? हमारी माताओं और बहिनों को इनके जीवन से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए उन्हें अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि सिर्फ अपने कुटुम्ब का भरण-पोषण और देख-भाल ही उनके जीवन का लक्ष्य नहीं है। बल्कि देश-सेवा उनका भी सर्वोत्कृष्ट कर्त्तव्य है। यह सर्वथा उचित ही था कि छोटो मोटों की तो बात ही क्या है बड़े-बड़े हिन्दु-मुसलमान लोगों ने अपने भेद-भाव भुलाकर बिल्कुल एक मन से शोक और श्रद्धा-प्रकट की। सचमुच ऐसे मौकर पर तो ऐसा होता ही है अथवा ऐसा होना ही चाहिए। अब वह समय आ गया है जब हम लोगों को चाहिए कि आम तौर पर हिन्दू-मुस्लिम आपस में एक हो जावें। व्यर्थ में लड़ने-झगड़ने, कहने-सुनने और धर्म के मामलों पर गरमा-गरम बात-चीत करने तथा एक-दूसरे से जवाब-तलब करवाने में शक्तिनाश करना सर्वथा हानिकारक है हिन्दू-महासभा, मुस्लिम-लीग, हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन ऐसी भारत-व्यापी संस्थाओं को चाहिए कि वे हिन्दू-मुसलमान, हिन्दी-उर्दू और हिन्दी-उर्दू-हिन्दुस्तानी के झमेले में न पड़ें स्वतन्त्रता के मैदान में एक होकर उतरत आवें।

--कुल शब्दः 328--

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