मंच पर बोलने से अब डरना क्यों
स्कूल में बच्चों से लेकर पेशेवर अभिनेताओं तक, जो कोई भी सार्वजनिक मंच पर प्रदर्शन करता है, उसे मंच पर डर का खतरा होता है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि महात्मा गांधी, वारेन बुफे, थॉमस जेफ़र्सन जैसी महान विभूतियों को भी इस डर को जीतने के लिए हमारी ही तरह संघर्ष करना पड़ा था। महान लोग कभी अपनी महानता के साथ जन्म नहीं लेते। उनके कार्य उन्हें महान बनाते हैं। जब भी उन्हें किसी कठनाई का सामना करना पड़ता है, तो वे अपनी मेहनत, मजबूत इरादे और लगन से उसका जमकर मुकाबला करते हैं। मंच के डर के बावजूद लोग प्रदर्शन करने के लिए मजबूर क्यों महसूस करते हैं? उत्तर सीथा है। प्रदर्शन खून में है। सब किसी न किसी तरह से अपने आपको प्रदर्शित करते हैं, यह एक निर्बाध चलने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है, हम चाह कर भी इससे बच नहीं सकते। मंच का डर ज्यादातर फोबिया की तुलना में कुछ अलग तरह से प्रकट होता है। फोबिया आमतौर पर प्रदर्शन से हफ्तों या महीनों पहले शुरु होता है, जो अक्सर निम्न-स्तर की सामान्यीकृत चिंता के रूप में प्रकट होता है। यदि आपकी यह स्थिति है, तो आप अति-अलर्ट, उछल-कूद और ऊर्जा से भरपूर महसूस करने लग सकते हैं। जैसे-जैसे प्रदर्शन की तारीख नज़दीक आती है, लक्षण बिगड़ते जाते हैं। मंच पर जाने से कुछ घंटे पहले, आप गैस्ट्रोइंटेस्ठाइनल समस्याओं जैसे उल्टी या दस्त, चिड़चिड़ामिजाज, कंपकंपी और दिल की धड़कन सहित अनेक पारंपरिक फोबिया लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं।.....
मंच पर भय का क्या कारण है?
जो कोई भी दूसरों के सामने परफॉर्म करता है, उसे मंच पर डर लगने का खतरा होता है। चाहे आप एक व्यावसायिक रणनीति बैठक का नेतृत्व कर रहे हों या किसी सेवानिवृत्ति पार्टी में विदाई भाषण दे रहे हों, दबाव भारी हो सकता है। मंच का डर अक्सर चीजों को पूरी तरह से करने की हमारी अपनी उम्मीदों में निहित होता है। मंच डर के कुछ कारण हैं, दूसरों की राय पर बहुत अधिक ध्यान देना, अस्वीकृति या असफलता का डर, स्वयं से अवास्तविक अपेक्षाएं रखना, किसी के कौशल और क्षमताओं को कम आंकना, बाहरी काक जैसे दर्शकों का आकार, प्रदर्शन का महत्व, आदि-आदि।
क्या मंच के डर को रोका जा सकता है?
मंच के डर से निपटने के लिए मुस्कराते हुए अभिवादन करें और अभिवादन को स्वीकार करें। यह आपने विनम्र होने का प्रतीक भी है। पहले कदम के रूप में, अपने आप को याद दिलाएं कि जिस विषय के बारे में आप भावुक हैं, वह श्रेताओं के लिए सबसे अधिक रुचिकर है और वे सुन रहे हैं, आपके और आपके बोलने के कौशल के बारे में नहीं सोच रहे हैं। यहां 10 `त्वरित सुधार` दिए गए हैं, जिनका उपयोग आप और भी अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोणों के लिए कर सकते हैं, जब मंच पर डर की बात आती है।
बीच-बीच में हंसें
भाषण को रोचक बनाने के लिए प्रसंगों में हास्य का पुट परम आवश्यक है। हंसी चिकित्सीय हो सकती है और घबराहट से निपटने में आपकी मदद कर सकती है। यह आपका ध्यान केंद्रित करती है और आपको मन के सकारात्मक फ्रेम में ले जाती है। यदि आपसे अपने भाषण या प्रस्तुति में कोई गलती हो, तो आप स्वयं पर हंस सकते हैं। लेकिन, ध्यान रहे कि बहुत सारी गलतियां न हो, जिससे कि आप उपहास के पात्र बन जाएं। अपनी त्रुटियों को स्वीकार कर आगे बढ़ जाएं।
समय की कद्र करें
आयोजन स्थल पर समय से पहुंचे। जब आप सेटिंग्स, जैसे माइक, ओएचपी, कंप्यूटर का कनेक्शन आदि से परिचित होंगे, तो आप अधिक कॉन्फ़िडेंट महसूस करेंगे। इसके अलावा, जल्दी पहुंचने पर आपको तैयारी और स्टेज की संरचना महसूस करने में मदद मिलेगी।
एक-एक दर्शक पर ध्यान दें
यह आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, जिसमें अजनबियों से भरे कमरे में उस व्यक्ति की पहचान करें जो सिर हिला रहा है या मुस्करा रहा है-इसका मतलब है कि वह आपकी बात ध्यान से सुन रहा है। उसका नाम पूछें और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दें। यह अभ्यास आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करता है।
ज्ञान ही शक्ति है
जिस विषय पर आप बोलने जा रहे हैं, उसको भली-भांति जान लें। यह आपके अंदर बसने वाले डर को समाप्त कर देगा। अंदर के खोखलेपन को छुपाते हुए, आप बाहर के भय से मुक्त नहीं हो सकते। अपने श्रोताओं को मूर्ख बनाने का प्रयास न करें। अपनी प्रस्तुति या भाषण को गहराई से जान-समझ लें जिससे आप अपने श्रोताओं के समय को सम्मान दे सकें।
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ReplyDeletegood
ReplyDeleteHelpfull
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