एकता की कीमत
एक नदी थी। उसके किनारे एक पेड़ था। पेड़ पर
चिड़ियो के एक जोड़े ने घोसला बनाया था। घोसलें में चिड़ी ने अण्डे दिए थे। चिड़ी
उनकी खूब देखभाल करती थी। जब चिड़ी बाहर दाना चुगने जाती थी तो चिड़ा उनकी रखवाली
करता।
एक दिन चिड़ी चिड़े को घोसले की रखवाली में
छोड़ दाने की खोज में दूर निकल चली। जब बहुत देर तक चिड़ी नहीं लोटी तो चिड़ा भूख
से व्याकूल हो उठा। वह नदी में पानी पीने उतरा। वह ढेर सारा पानी गटक गया। फिर भी
भूख कम नहीं हुई। चिड़ा भी दोनो की खोज में निकल पड़ा।
उसी पेड़ पर एक गिलहरी रहती थी। वह बड़ी
दुष्ट थी। उससे चिड़ियो का सुख देखा नहीं जाता था। इसलिए घोसले को सूना पाकर वह झट
पेड़ पर चढ़ गयी। डाल पर घोसला मानो उसे चिढ़ा रहा था। ““क्या तू बना सकता है
इतना सुन्दर घोसला?”
गिलहरी की ईष्या जाग उठी। उसने
घोसले सहित अण्डे नीचे गिरा देने का विचार किया। वह जल्दी-जल्दी अपने तीखे दांतो
से घोसले में एक-एक तिनक को काटने लगी। तभी अचानक एक कटीला तिनका गिलहरी की आँख
में चुभ गया। उसकी आँख से खून निकलने लगा। वह चीखते कराहते भाग गयी। थोड़ी देर बाद
चिड़ी दाना चुगकर वापस आयी तो उसने देखा कि उसके अण्डे नीचे गिरे हुए है एवम्
घोसला भी उजड़ गया है वह रोने लगी उसे पता था कि एक दिन ईर्ष्यालु गिलहरी जरूर
हमारा अहित करेगी। वह वही बैठकर रोने लगी। थोड़ी देर बाद चिड़ा भी आ गया। चिड़ी ने
उससे रोते हुए कहा हमारे अण्डे उस दुष्ट गिलहरी ने नीचे गा दिये। उसने घोसला भी
काट डाला हमसे हमारे बच्चे भी छीन लिए। आखिर हमने उसका क्या बिगाड़ा था।
चिड़ा चिड़ी को शान्त कराते हुए
बोला- “संकट के समय हिम्मत एवम्
धैर्य से काम लिया जाता है।” जो हुआ सो हुआ। चलो हम तुन नये सिरे से घोसला
बनाये। तभी उन्होने देखा नीचे वही गिलहरी कराह रही है। उसकी एक आँख में तिनका चुभा
हुआ है। चिड़ा गिलहरी के पास जाकर बोला-आखिर हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुमने
हमारे अण्डे नष्ट कर दिये घोसला भी तोड़ दिया। अब उसका परिणाम भुगत रही हो? चिड़ी
बोली अच्छा है। इसे तड़पने दो। इसने हमारा घर उजाड़ा है।
हाँ
मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं तुम्हारे सुख से जलती थी मुझे माफ कर दो। मुझको
बचा लो और मेरी आँख में फसा हुआ तिनका निकाल दो। गिलहरी रो रही थी।
चिड़ा
बोला ठीक है। वादा करो फिर कभी किसी की खुशी देखकर ईर्ष्या नहीं करोगी।
मैं
वादा करती हूँ। अब मैं किसी से ईर्ष्या नहीं करूँगी। लेकिन जल्दी से तिनका तो
निकालो। मेरी आँखों में बहुत दर्द हो रहा है। चिड़ा ने अपनी चोंचे से उसकी आँख में
चुभा तिनका निकाल दिया। गिलहरी को बहुत आराम मिला। अब वह चिड़ा चिड़ी को दोस्त बन
गयी और बोली कभी कोई मुसीबत पर मुझको आवाज देना। मैं अपनी जान पर खेलकर भी
तुम्हारी मदद करूँगी।
कुछ
दिन बाद चिड़ा चिड़ी ने फिर एक सुन्दर घोसला बना लिया। उसमें अण्डे दिये। अब अण्डो
से सुन्दर प्यारे-प्यारे बच्चे निकल आए। चिड़ा-चिड़ी उनके लिए जब दाने लेने दूर
चले जाते तो गिलहरी उनकी रक्षा करती।
एक दिन
की बात है। चिड़ा-चिड़ी अपने बच्चो के लिए दाना लाने दूर निकल गए। गिलहरी बच्चो के
पास थी, अचानक बच्चे चीखने लगे। एक विषैला साँप पेड़ पर चड़ा आ रहा था। बच्चे डरकर
रोने लगे। वे अभी उड़ नहीं सकते थे। साँप बच्चो के खाने के लिए उनकी तरफ बढ़ा चढ़ा
आ रहा था। गिलहरी पलभर के लिए घबरा गयी। उसने सोचा, मेरे कष्ट में चिड़ा चिड़ी ने
साथ दिया था। मुझे उनके इस उपकार का बदला चुकाना चाहिए। वह चीखने लगी बचाओ, बचाओ
परन्तु मदद के लिए कोई नहीं आया। वह किसी भी कीमत पर बच्चो की रक्षा करना चाहती
थी। आखिर बहुत विश्वास के साथ चिड़ा-चिड़ी ने अपने बच्चों की देखभाल एवम् रक्षा के
लिए उसके पास छोड़ गए थे।
अचानक
गिलहरी के दिमाग में एक बात आई वह पेड़ पर ही रहने वाली लाल चीटियों के पास गई। और
उन्हे सब बातें बतायी। लाल चीटियों का झुंड अचानक साँप पर लिपट पड़ा। सांप फुकारता
हुआ वापस लौट गया। गिलहरी ने राहत की साँस ली। गिलहरी ने बच्चो को देखा। वे डरे
सहमे से अपने घोसले में दुबके हुए थे। तभि चिड़ा-चिड़ी आ गए। गिलहरी ने सारी बात
बताई। उसने कहा दुश्मन कमजोर पर हमला करते है, हमको एक होना पड़ेगा। अपनी शक्ति
बढ़ानी होगी। चिड़ा-चिड़ी ने गिलहरी, कोयल, तोता, कबूतर, मैना, नीलकण्ठ को कहा। सब
एक पेड़ पर रहने लगे। कबूतर दिन भर बच्चो के साथ खेलता रहता। अब सब एक साथ थे।
मुसीबत के समय सब दुश्मन से टक्कर लेते। उनकी एकता को देखकर साँप भी घबरा गया और
एक दिन उस पेड़े के नीचे वाले अपने बिल से निकल कर कहीं और चला गया।
दोस्तो,
इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है। कि हमें एकता के साथ रहना चाहिए। जिससे हम
आने वाले मुसीबतो का सामना कर सके। वास्तव में एकता में बहुत ताकत है। एकता की
कीमत अनमोल है।

0 Comments