स्वार्थ का फल
किसी गाँव में एक ऊँट और एक सियार साथ-साथ रहते
थे। वे साथ-साथ भले ही रहते थे किन्तु उनमें कोई गहरी दोस्ती भी नहीं थी। वे केवल
पड़ौसी की भाँति ही रहा करते थे। उस गाँव के पास ही एक नदी बहती थी। नदी के दूसरी
और वे बालू के मैदानों में उस समय खरबूजे की खेती होती थी। यह बात सियार को मालूम
थी। उनका मन प्रतिदिन खरबूजे खाने के लिए ललचाता था। उसकी जीभ से लार टपकने लगती
थी लेकिन वह बेबस था। नदी पार क रना उसके बूते की बात नहीं थी।
सियार बड़ा चालाक था। एक दिन उसके दिमाग में यह
विचार आया कि वह ऊँट की पीठ पर बैठकर नदी पार कर सकता है। उस विचार के सूझते ही वह
ऊँट के पास जा पहँचा ऊँट दादा यदि बुरा न मानो तो एक बात कहूँ सियार ने उससे पूछा।
ऊँट
को तो सियार की चालाकी मालूम नहीं थी। उसने झट से हाँ कर दी।
तब
सियार कहने लगा। ऊँट दादा नदीं के उस पार खेतों में खरबूजे की अच्छी फसल लगी है।
मुझे यह बात अच्छी तरह मालूम है। यदि तुम चाहो तो हमें खूब मीठे-मीठे खरबुजे खाने
को मिलेंगे।
इससे
मेरे चाहने न चाहने की क्या बात है? ऊँट ने पूछा।
तब
सियार भोली सूरत बनाकर बाते बनाने लगा दादा, तुम्हे पता ही है मैं ठहरा कमजोर नदी
पार नहीं कर सकता। यदि तुम चाहो तो मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करा सकते हो।
फिर तो मजे ही रहेगे।
सियार
की बात सुनकर ऊँट ने हामी भर दी। दोनो ने फैसला किया कि आधी रात को नदी पार की
जायेगा।
आधी रात वे दोनो नदी के किनारे पहुँचे। सियार ऊँट की पीठ पर बैठा और ऊँट ने नदी पार कर ली।
इसके
बाद वे खेतों में पहुँचे। खेतों में पहुँचकर सियार ने फुसफुसाते हुए कहा- ऊँट
दादा, खूब खाओ, खरबूज किन्तु आवाज न हो। नहीं तो खेत का मालिक जाग जायेगा और हमारी
जमकर पिटाई कर देगा।
योजनानुसार
दोनो सावधानी पूर्वक खरबूजे खाने लगे। सियार ठहरा छोटे पेट वाला। उसका पेट जल्दी
ही भर गया।
मुझे
अब हुआस आ रही है। मैं तो अब हुँआ-हुँआ करूँगा। तब ऊँट ने कहा- थोड़ी देर रुक जाओ
भैया। कम से कम दस मिनट और तब तक मेरा पेट भी भर जायेगा।
लेकिन
सियार था स्वार्थी कब मानने लगा। वह जोर-जोर से हुँआ-हुँआ करने लगा। सियार की इस
हुआंस से खेत के मचान पर सोये मालिक की नींद टूट गयी।
अपने
खेत में ऊँट को खरबूजा खाते देखकर किसान क्रोधित हो उठा। उसने लाठी उठाई और ऊँट पर
भिड़ पड़ा सियार छोटा और फुर्तीला था। वह दौड़कर एक झाड़ी में छुप गया।
अपनी
फसल की तबाही का बदला उस कितान ने ऊँट की जोरदार पिटाई करके निकाला। उसने ऊँट की
इतनी पिटाई की कि उसकी पीठ जगह-जगह छिल गयी थी। पीठ से खून रिसने लगा। वह वहाँ से
नदी की और भाग चला।
ऊँट
जब नदी के किनारे पहुँचा तो वहाँ पर पहले से ही आया सियार मिला। सियार को देखकर
ऊँट की आँखों में खून उतर आया। फिर भी वह शान्त ही रहा।
उसके
पीठ से खून रिसता देखकर सियार ने चापलूसी करनी शुरु कर दी। बड़ा बेरहम है वह
किसान। उसने कैसी गति कर दी है आपकी ऊँट कुछ नहीं बोला और नदी में उतर गया। उसके
उतरते ही सियार फूर्ति से उसकी पीठ पर चढ़ गया। ऊँट चुप ही रहा।
तैरते-तैरते
नदी के ठीक बीच में पहुँचकर कहने लगा। सियार भाई, अब तो मुझे इस नदीं में लोटने की
इच्छा हो रही है। क्या? ऊँट की बात सुनकर सियार का मुँह खुला का खुला रह गया। वह
गिड़गिड़ाने लगा। दादा मैं तो डूब जाऊँगा। ऐसा करो पहले मुझे नदी पार करा दो फिर
लोटते रहना।
ऊँट
ने कहा-कौन किसकी परवाह करता है भाई मेरे कहने पर तुम्हारी हुआँस नहीं रुक सकी तो
तेरे कहने पर मेरी लोटास कहाँ रुक सकती है।
इतना
कहने के बाद ऊँट नदी में उलट-पुलट कर लोटने लगा। इस लोटम पोट में सियार चिल्लाते
हुए नदी की तेज धारा में गिर पड़ा। नदी के तेज बहाव में जब सियार डूब गया। तब ऊँट
नदी पार करके अपने गाँव पहुँच गया।
दोस्तो
स्वार्थी लोगो का यही हाल होता है जैसे सियार का हुआ। अतः स्वार्थ पर को त्याग
देना चाहिए।

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